कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
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Society
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Лучшие Society подкасты, которые нам удалось найти
Лучшие Society подкасты, которые нам удалось найти
Over the years, podcasts have become an increasingly popular medium because they are well-packed, can be followed from any place, at any time and without Internet connection. Listening to podcasts enables people gain a clearer insight about the social affairs and social issues in every corner of the world. In this catalog, there are podcasts where well-read hosts and guests discuss about people of different religions and their way of life and culture, of different communities, countries, continents, different philosophies as well as different points of view on society. Also, literature fans can learn more about the latest news from their favourite genres, emerging authors, current best selling books and literary theories. Furthermore, people can find interviews and true and inspiring life stories told by people from all walks of life. Some podcasts house activists who fight for the rights of the oppressed, ranging from animals to people, aiming at creating a better society.
wHI MP3
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हमें ज़िन्दगी में एक दोस्त ऐसा ज़रूर चाहिए होता है जो हमारी problems को सुने और समझे भी, क्यूंकि बिना समझे ज्ञान तो सभी देतें हैं। एक टुकड़ा ज़िन्दगी का, में Ashish Bhusal आपके उस दोस्त की कमी पूरा करना चाहतें हैं। In each episode, Ashish will talk about a common yet pressing issue proposed by you. And he will share a few tips to resolve it. To get your issue featured and resolved on this podcast DM Ashish on Instagram @ashupanti. And to stay updated on Ek Tukda Zindagi ka follow us on FB, IG, T ...
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Hi there beautiful! In my podcast, I bring you topics that are close to women's heart. Using research and storytelling (and poetry), I shed light on issues that are often ignored by the society, such as contribution of full time mothers, grey hair and society ki soch, challenges faced by working mothers. I hope that you will find your story reflected in my podcasts. I also have a weekly news (samachar) brief where you can catch up with the latest from the world. So join me on a new journey e ...
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साहित्य और रंगकर्म का संगम - नई धारा एकल। इस शृंखला में अभिनय जगत के प्रसिद्ध कलाकार, अपने प्रिय हिन्दी नाटकों और उनमें निभाए गए अपने किरदारों को याद करते हुए प्रस्तुत करते हैं उनके संवाद और उन किरदारों से जुड़े कुछ किस्से। हमारे विशिष्ट अतिथि हैं - लवलीन मिश्रा, सीमा भार्गव पाहवा, सौरभ शुक्ला, राजेंद्र गुप्ता, वीरेंद्र सक्सेना, गोविंद नामदेव, मनोज पाहवा, विपिन शर्मा, हिमानी शिवपुरी और ज़ाकिर हुसैन।
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Bhalta Raja - Musical presentation on the lines of Altaf Raja. RJ Ravi imitates Altaf like nobody else and uses the sarcasm to highlight important matters of the society.
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Hum lekar aaye hain aap logon ke liye ek bahut hi khaas audio series jo ki inspired hai “Maila Aanchal” upanyas se jiske lekhak hai “Phanishwar Nath Renu”. Aaiye samajhte hain gaon ki kathinaiyon, gareebi, zamindari pratha ke bare mein vistaar se Depak Yadav ke aawaz mein.Toh der kis baat ki shuru kariye sunana “Maila Anchal” sirf “Audio Pitara” par. #audiopitara #sunnazaroorihai #audio #series #rural #life #poverty #zamindari #system #mailaaanchal #books #society #culture #history
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हमारे आस-पास कब क्या वारदात हो जाए कौन आपका दुश्मन साबित हो जाए ये जानना मुश्किल है। जब जुर्म दस्तक देता है तो उसकी आवाज़ बहुत कम पर रफ़्तार तेज़ होती है, लेकिन उसके शुरू होने के 4 मुख्य कारण होते हैं, पहला - लालच, दूसरा - मोह, तीसरा - माया यानि पैसा और शोहरत, चौथा - बदला। इस श्रंखला में अंकुश बख्शी पेश करेंगे अपराध जगत के तमाम मामलों की रिपोर्ट, सुनिए और सावधान रहिए।
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Chandragupt Maurya ki Kahani by Jaishankar Prasad : History Podcast
Audio Pitara by Channel176 Productions
Mauraya Samrajya ke sansthapak Chandragupt ne apni sujhbhujh aur himmat par Bharat ki taraf badhte videshi hamlavar Sikandar ko roka tha. Isi Chandragupt ko kendra mein rakh kar Jayshankar Prasad ne 'Chandragupt' shirshak se natak ki rachna ki hai, jisme Bharatiya itihaas, darshan evam sanskriti ki jhalak milti hai. Aise hi, interesting audio stories aur podcast suniye only on Audio Pitara par. #chandragupt #journey #power #struggles #sacrifices #ancient #india #epic #audiopitara #sunnazaroo ...
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Din Bhar is a daily news analysis podcast in Hindi language presented by Aaj Tak Radio. It covers issues ranging from Politics and international relations to health, society, cinema and sports. Did your regular prime time debate miss something that really matters to you? Close your day with Din Bhar, wherein we pick four big news stories of the day and analyse them with help of experts in a manner that is easy to understand. दिन भर के शोर के बाद शाम ढल गई है. हमारे यहां आइए. ख़बरों के सबसे अ ...
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“Skandagupta" is a drama by the poet "Jaishankar Prasad". The play revolves around the historical figure Skandagupta, a "Gupta dynasty" emperor who ruled in ancient India. The play explores Skandagupta's challenges and commitment to upholding justice and righteousness through the dramatic narrative. The drama delves into themes of leadership, duty, and patriotism while also depicting the personal struggles and decisions faced by Skandagupta. Skandagupta" is a drama written by Hindi poet and ...
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25 Sarvshreshth Kahaniyan (Hindi Audiobook) by Manto (25 Selective Stories of Saadat Hasan Manto)
Audio Pitara by Channel176 Productions
Saadat Hasan Manto was a renowned Urdu writer who gained fame for his stories with a touch of mystery and cool detachment. And now, Audio Pitara has brought to you 'Saadat Hasan Manto,' featuring "25 Sarvshreshth Kahaniyaan" a Hindi audiobook narrated by Kishore and his team. Experience Manto's intriguing tales, where you will discover the true meaning of love and passion—a must-listen audiobook exclusively on "Audio Pitara”. These captivating stories, including "Thanda Gosht”, "Toba Tek Sin ...
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Paish hai aapke liye brand new series ‘’Pratinidhi kahaniyan’’ jo likhi gayi hain ek bahut hi jaani-maani lekhika, upanyaskar,aur bahut hi achhi film nirmata Ismat Chugtai dwara. Iss series main honge 14 interesting episodes jisme aap janenge muslim dharm ke bare main,lekhika ke jeewan ke baare main aur bhi bahut kuch khaas, toh rukna kisliye? Shuru kariye sari sunana or janiye Ismat Chugtai ke bare main sirf ‘’Audio Pitara’’ par. Stay Updated on our shows at audiopitara.com and follow us on ...
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रिश्ता | अनामिका वह बिल्कुल अनजान थी! मेरा उससे रिश्ता बस इतना था कि हम एक पंसारी के गाहक थे नए मुहल्ले में! वह मेरे पहले से बैठी थी- टॉफी के मर्तबान से टिककर स्टूल के राजसिंहासन पर! मुझसे भी ज़्यादा थकी दिखती थी वह फिर भी वह हँसी! उस हँसी का न तर्क था, न व्याकरण, न सूत्र, न अभिप्राय! वह ब्रह्म की हँसी थी। उसने फिर हाथ भी बढ़ाया, और मेरी शॉल का सिर…
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कैसे बचाऊँगा अपना प्रेम | आलोक आज़ाद स्टील का दरवाजा गोलियों से छलनी हआ कराहता है और ठीक सामने, तुम चांदनी में नहाए, आँखों में आंसू लिए देखती हो हर रात एक अलविदा कहती है। हर दिन एक निरंतर परहेज में तब्दील हुआ जाता है क्या यह आखिरी बार होगा जब मैं तुम्हारे देह में लिपर्टी स्जिग्धता को महसूस कर रहा हूं और तुम्हारे स्पर्श की कस्तूरी में डूब रहा हूं देख…
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कंकरीला मैदान | केदारनाथ अग्रवाल कंकरीला मैदान ज्ञान की तरह जठर-जड़ लंबा-चौड़ा, गत वैभव की विकल याद में- बड़ी दूर तक चला गया है गुमसुम खोया! जहाँ-तहाँ कुछ- कुछ दूरी पर, उसके ऊपर, पतले से पतले डंठल के नाज़ुक बिरवे थर-थर हिलते हुए हवा में खड़े हुए हैं बेहद पीड़ित! हर बिरवे पर मुँदरी जैसा एक फूल है। अनुपम मनहर, हर ऐसी सुंदर मुँदरी को मीनों ने चंचल आँखो…
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तब्दीली | अख़्तरुल ईमान इस भरे शहर में कोई ऐसा नहीं जो मुझे राह चलते को पहचान ले और आवाज़ दे ओ बे ओ सर-फिरे दोनों इक दूसरे से लिपट कर वहीं गिर्द-ओ-पेश और माहौल को भूल कर गालियाँ दें हँसें हाथा-पाई करें पास के पेड़ की छाँव में बैठ कर घंटों इक दूसरे की सुनें और कहें और इस नेक रूहों के बाज़ार में मेरी ये क़ीमती बे-बहा ज़िंदगी एक दिन के लिए अपना रुख़ म…
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मीरा मजूमदार का कहना है | कुमार विकल सामने क्वार्टरों में जो एक बत्ती टिमटिमाती है वह मेरा घर है इस समय रात के बारह बज चुके हैं मैं मीरा मजूमदार के साथ मार्क्सवाद पर एक शराबी बहस करके लौटा हूँ और जहाँ से एक औरत के खाँसने की आवाज़ आ रही है वह मेरा घर है मीरा मजूमदार का कहना है कि इन्क़लाब के रास्ते पर एक बाधा मेरा घर है जिसमें खाँसती हुई एक बत्ती है…
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wHI MP3 फरवरी 2025 - 05
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wHI MP3 फरवरी 2025 - 08
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एक समय था- रघुवीर सहाय एक समय था मैं बताता था कितना नष्ट हो गया है अब मेरा पूरा समाज तब मुझे ज्ञात था कि लोग अभी व्यग्न हैं बनाने को फिर अपना परसों कल और आज आज पतन की दिशा बताने पर शक्तिवान करते हैं कोलाहल तोड़ दो तोड़ दो तोड़ दो झोंपड़ी जो खड़ी है अधबनी फ़िज़ूल था बनाना ज़िद समता की छोड़ दो एक दूसरा समाज बलवान लोगों का आज बनाना ही पुनर्निर्माण है जिन…
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देश हो तुम | अरुणाभ सौरभ में तुम्हारी कोख से नहीं तुम्हारी देह के मैल से उत्पन्न हुआ हूँ भारतमाता विघ्नहरत्ता नहीं बना सकती माँ तुम पर इतनी शक्ति दो कि भय-भूख से मुत्ति का रास्ता खोज सकूँ बुद्ध-सी करुणा देकर संसार में अहिंसा - शांति-त्याग की स्थापना हो में तुम्हारा हनु पवन पुत्र मेरी भुजाओं को वज्र शक्ति से भर दो कि संभव रहे कुछ अमरत्व और पूजा नहीं…
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हम मिलते हैं बिना मिले ही | केदारनाथ अग्रवाल हे मेरी तुम! हम मिलते हैं बिना मिले ही मिलने के एहसास में जैसे दुख के भीतर सुख की दबी याद में। हे मेरी तुम! हम जीते हैं बिना जिये ही जीने के एहसास में जैसे फल के भीतर फल के पके स्वाद में।Nayi Dhara Radio
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कम से कम एक दरवाज़ा | सुधा अरोड़ा चाहे नक़्क़ाशीदार एंटीक दरवाज़ा हो या लकड़ी के चिरे हुए फट्टों से बना उस पर खूबसूरत हैंडल जड़ा हो या लोहे का कुंडा वह दरवाज़ा ऐसे घर का हो जहाँ माँ बाप की रज़ामंदी के बग़ैर अपने प्रेमी के साथ भागी हुई बेटी से माता पिता कह सकें - 'जानते हैं, तुमने ग़लत फ़ैसला लिया फिर भी हमारी यही दुआ है ख़ुश रहो उसके साथ जिसे तुमने वरा है य…
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सुनो कबीर ! | नासिरा शर्मा सुनो कबीर, चलो मेरे साथ वहाँ जहाँ तुम्हारी प्रताड़ना के बावजूद डूब रहे हैं दोनों पक्ष ज़रूरत है उन्हें तुम्हारी फटकार की वह नहीं सुन रहे हैं हमारी बातें हमारी चेतावनी, कर रहे हैं मनमानी अंधविश्वास की पट्टी बंध चुकी है उनकी रौशन आँखों पर और आगे का रास्ता भूल , वह भटक रहे हैं पीछे बहुत पीछे अतीत की ओर तुम्हीं सिखा सकते हो, …
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सूर्यास्त के आसमान | आलोक धन्वा उतने सूर्यास्त के उतने आसमान उनके उतने रंग लम्बी सडकों पर शाम धीरे बहुत धीरे छा रही शाम होटलों के आसपास खिली हुई रौशनी लोगों की भीड़ दूर तक दिखाई देते उनके चेहरे उनके कंधे जानी -पह्चानी आवाज़ें कभी लिखेंगें कवि इसी देश में इन्हें भी घटनाओं की तरह!Nayi Dhara Radio
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पहले बच्चे के जन्म से पहले | नरेश सक्सेना साँप के मुँह में दो ज़ुबानें होती हैं। मेरे मुँह में कितनी हैं अपने बच्चे को दुआ किस ज़ुबान से दूँगा खून सनी उँगलियाँ झर तो नहीं जाएँगी पतझर में अपनी कौन-सी उँगली उसे पकड़ाऊँगा सात रंग बदलता है गिरगिट मैं कितने बदलता हूँ किस रंग की रोशनी का पाठ उसे पढ़ाऊँगा आओ मेरे बच्चे मुझे पुनर्जन्म देते हुए आओ मेरे मैल पर…
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इस समय | नीलेश रघुवंशी एक कोने में बिल्ली अपने बच्चों को दूध पिला रही है। छोटे-छोटे बच्चे और बिल्ली इतने सटे हुए हैं आपस में मुश्किल है उन्हें गिननाq एक औरत पेड़ में रस्सी का झुला डाल, झुला रही है बच्चे को साथ-साथ बच्चे के-औरत भी जा रही है धीरे-धीरे नींद में इस समय एक पत्ता भी नहीं खड़कना चाहिए।Nayi Dhara Radio
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मैंने पूछा क्या कर रही हो | अज्ञेय मैंने पूछा यह क्या बना रही हो? उसने आँखों से कहा धुआँ पोंछते हुए कहा- मुझे क्या बनाना है! सब-कुछ अपने आप बनता है। मैने तो यही जाना है। कह लो भगवान ने मुझे यही दिया है। मेरी सहानुभूति में हठ था- मैंने कहा- कुछ तो बना रही हो या जाने दो, न सही बना नहीं रही क्या कर रही हो? वह बोली- देख तो रहे हो छीलती हूँ नमक छिड़कती …
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घरौंदा | एकता वर्मा धूल में नहाए शैतान बच्चे खेल रहे हैं घरौंदा-घरौंदा। जोड़ रहे हैं ईट के टुकडे, पत्थर, सीमेंट के गुटके बना रहे हैं नन्हे-न्हे घर हँस रहे हैं, तालियाँ पीट रहे हैं। यह फ़िलिस्तीन का दुर्भाग्य है कि उसके बच्चे अपने न्हे घरों को बनाने के लिए चुन रहे हैं मलबा पड़ोसियों के ज़मीदोज़ हुए मकानों से। मैंने पूछा क्या कर रहे हो?…
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एक बोसा | कैफ़ी आज़मी जब भी चूम लेता हूँ उन हसीन आँखों को सौ चराग अँधेरे में जगमगाने लगते हैं फूल क्या शगूफे क्या चाँद क्या सितारे क्या सब रकीब कदमों पर सर झुकाने लगते हैं रक्स करने लगतीं हैं मूरतें अजन्ता की मुद्दतों के लब-बस्ता ग़ार गाने लगते हैं फूल खिलने लगते हैं उजड़े उजड़े गुलशन में प्यासी प्यासी धरती पर अब्र छाने लगते हैं लम्हें भर को ये दुन…
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घिसी पेंसिल | रघुवीर सहाय फिर रात आ रही है। फिर वक्त आ रहा है। जब नींद दुःख दिन को संपूर्ण कर चलेंगे एकांत उपस्थत हो, 'सोने चलो' कहेगा क्या चीज़ दे रही है यह शांति इस घड़ी में ? एकांत या कि बिस्तर या फिर थकान मेरी ? या एक मुड़े कागज़ पर एक घिसी पेंसिल तकिये तले दबाकर जिसको कि सो गया हूँ ?Nayi Dhara Radio
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सीखो | श्रीनाथ सिंह फूलों से नित हँसना सीखो, भौंरों से नित गाना। तरु की झुकी डालियों से नित, सीखो शीश झुकाना! सीख हवा के झोकों से लो, हिलना, जगत हिलाना! दूध और पानी से सीखो, मिलना और मिलाना! सूरज की किरणों से सीखो, जगना और जगाना! लता और पेड़ों से सीखो, सबको गले लगाना! वर्षा की बूँदों से सीखो, सबसे प्रेम बढ़ाना! मेहँदी से सीखो सब ही पर, अपना रंग चढ़…
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अपाहिज व्यथा | दुष्यंत कुमार अपाहिज व्यथा को सहन कर रहा हूँ, तुम्हारी कहन थी, कहन कर रहा हूँ । ये दरवाज़ा खोलो तो खुलता नहीं है, इसे तोड़ने का जतन कर रहा हूँ । अँधेरे में कुछ ज़िन्दगी होम कर दी, उजाले में अब ये हवन कर रहा हूँ । वे सम्बन्ध अब तक बहस में टँगे हैं, जिन्हें रात-दिन स्मरण कर रहा हूँ । तुम्हारी थकन ने मुझे तोड़ डाला, तुम्हें क्या पता क…
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धूल | हेमंत देवलेकर धीरे-धीरे साथ छोड़ने लगते हैं लोग तब उन बेसहारा और यतीम होती चीज़ों को धूल अपनी पनाह में लेती है। धूल से ज़्यादा करुण और कोई नहीं संसार का सबसे संजीदा अनाथालय धूल चलाती है काश हम कभी धूल बन पाते यूं तो मिट्टी के छिलके से ज़्यादा हस्ती उसकी क्या पर उसके छूने से चीज़ें इतिहास होने लगती हैं। समय के साथ गाढ़ी होते जाना - धूल को प्रेम की त…
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दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के | फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के वीराँ है मय-कदा ख़ुम-ओ-साग़र उदास हैं तुम क्या गए कि रूठ गए दिन बहार के इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन देखे हैं हम ने हौसले पर्वरदिगार के दुनिया ने तेरी याद से बेगाना कर दिया तुझ से भी दिल-फ़रेब हैं ग़म रोज़गार के भूले…
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बेरोज़गार हम / शांति सुमन पिता किसान अनपढ़ माँ बेरोज़गार हैं हम जाने राम कहाँ से होगी घर की चिन्ता कम आँगन की तुलसी-सी बढ़ती घर में बहन कुमारी आसमान में चिड़िया-सी उड़ती इच्छा सुकुमारी छोटा भाई दिल्ली जाने का भरता है दम । पटवन के पैसे होते तो बिकती नहीं ज़मीन और तकाज़े मुखिया के ले जाते सुख को छीन पतले होते मेड़ों पर आँखें जाती है थम । जहाँ-तहाँ फटन…
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तुमसे मिलकर | गौरव तिवारी नदी अकेली होती है, पर उतनी नहीं जितनी अकेली हो जाती है सागर से मिलने के बाद। धरा अत्यधिक अकेली होती है क्षितिज पर, क्योंकि वहाँ मान लिया जाता है उसका मिलन नभ से। भँवरा भी तब तक नहीं होता तन्हा जब तक आकर्षित नहीं होता किसी फूल से। गलत है यह धारणा कि प्रेम कर देता है मनुष्य को पूरा मैं और भी अकेला हो गया हूँ, तुमसे मिलकर।…
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एक दुआ | कैफ़ी आज़मी अब और क्या तेरा बीमार बाप देगा तुझे बस एक दुआ कि ख़ुदा तुझको कामयाब करे वो टाँक दे तेरे आँचल में चाँद और तारे तू अपने वास्ते जिस को भी इंतख़ाब करेNayi Dhara Radio
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घटती हुई ऑक्सीजन | मंगलेश डबराल अकसर पढ़ने में आता है दुनिया में ऑक्सीजन कम हो रही है। कभी ऐन सामने दिखाई दे जाता है कि वह कितनी तेज़ी से घट रही है रास्तों पर चलता हूँ खाना खाता हूँ पढ़ता हूँ सोकर उठता हूँ एक लम्बी जम्हाई आती है जैसे ही किसी बन्द वातानुकूलित जगह में बैठता हूँ। उबासी का एक झोका भीतर से बाहर आता है एक ताक़तवर आदमी के पास जाता हूँ तो …
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हम औरतें | वीरेन डंगवाल रक्त से भरा तसला है रिसता हुआ घर के कोने-अंतरों में हम हैं सूजे हुए पपोटे प्यार किए जाने की अभिलाषा सब्जी काटते हुए भी पार्क में अपने बच्चों पर निगाह रखती हुई प्रेतात्माएँ हम नींद में भी दरवाज़े पर लगा हुआ कान हैं दरवाज़ा खोलते ही अपने उड़े-उड़े बालों और फीकी शक्ल पर पैदा होने वाला बेधक अपमान हैं हम हैं इच्छा-मृग वंचित स्वप्…
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नागरिक पराभव | कुमार अम्बुज बहुत पहले से प्रारंभ करूँ तो उससे डरता हूँ जो अत्यंत विनम्र है कोई भी घटना जिसे क्रोधित नहीं करती बात-बात में ईश्वर को याद करता है जो बहुत डरता हूँ अति धार्मिक आदमी से जो मारा जाएगा अगले दिन की बर्बरता में उसे प्यार करना चाहता हूँ कक्षा तीन में पढ़ रही पड़ोस की बच्ची को नहीं पता आने वाले समाज की भयावहता उसे नहीं पता उसके…
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करूँ प्रेम ख़ुद से | शिवानी शर्मा किसी के लिए हूँ मैं ममता की मूरत, किसी के लिए अब भी छोटी सी बेटी ll तजुर्बों ने किया संजीदा मुझको , पर किसी के लिए अब भी अल्हड़ सी छोटी॥ कहीं पे हूँ माहिर, कहीं पे अनाड़ी, कभी लाँघ जाऊँ मुश्किलों की पहाड़ी॥ कभी अनगिनत यूँ ही यादें पिरोती, कभी होके मायूस पलकें भिगोती॥ कभी संग अपनों के बाँटू मैं खुशियाँ, अकेले कभी ढे…
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दो मिनट का मौन | केदारनाथ सिंह भाइयो और बहनों यह दिन डूब रहा है। इस डूबते हुए दिन पर दो मिनट का मौन जाते हुए पक्षी पर रुके हुए जल पर घिरती हुई रात पर दो मिनट का मौन जो है उस पर जो नहीं है उस पर जो हो सकता था उस पर दो मिनट का मौन गिरे हुए छिलके पर टूटी हुई घास पर हर योजना पर हर विकास पर दो मिनट का मौन इस महान शताब्दी पर महान शताब्दी के महान इरादों प…
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बेचैन बहारों में क्या-क्या है / क़तील बेचैन बहारों में क्या-क्या है जान की ख़ुश्बू आती है जो फूल महकता है उससे तूफ़ान की ख़ुश्बू आती है कल रात दिखा के ख़्वाब-ए-तरब जो सेज को सूना छोड़ गया हर सिलवट से फिर आज उसी मेहमान की ख़ुश्बू आती है तल्कीन-ए-इबादत की है मुझे यूँ तेरी मुक़द्दस आँखों ने मंदिर के दरीचों से जैसे लोबान की ख़ुश्बू आती है कुछ और भी साँ…
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दौड़ | रामदरश मिश्र वह आगे-आगे था मैं उसके पीछे-पीछे मेरे पीछे अनेक लोग थे हाँ, यह दौड़-प्रतिस्पर्धा थी लक्ष्य से कुछ ही दूर पहले एकाएक उसकी चाल धीमी पड़ गयी और रुक गया मैं आगे निकल गया जीत के गर्वीले सुख के उन्माद से मैं झूम उठा उसके हार-जन्य दुख की कल्पना से मेरा सुख और भी उन्मत्त हो उठा मूर्ख कहीं का मैं मन ही मन भुनभुनाया उन्माद की हँसी हँसता ह…
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जैसे जब से तारा देखा | अज्ञेय क्या दिया-लिया? जैसे जब तारा देखा सद्यःउदित —शुक्र, स्वाति, लुब्धक— कभी क्षण-भर यह बिसर गया मैं मिट्टी हूँ; जब से प्यार किया, जब भी उभरा यह बोध कि तुम प्रिय हो— सद्यःसाक्षात् हुआ— सहसा देने के अहंकार पाने की ईहा से होने के अपनेपन (एकाकीपन!) से उबर गया। जब-जब यों भूला, धुल कर मंज कर एकाकी से एक हुआ। जिया।…
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साल मुबारक! | आशीष पण्ड्या साल मुबारक! भगवा हो या लाल, मुबारक! साल मुबारक! आज नया कल हुआ पुराना, टिक टिक करता काल मुबारक! पैसे की भूखी दुनिया को, थाल में रोटी-दाल मुबारक! चिंताओं से लदी चाँद पर, बचे खुचे कुछ बाल मुबारक! यहाँ पड़े हैं जान के लाले, वो कहते लोकपाल मुबारक! काली करतूतों की गठरी, धवल रेशमी शाल मुबारक! ग़ैरत! इज्ज़त! शर्म? निरर्थक, अब तो म…
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जीवन बचा है अभी | शलभ श्रीराम सिंह जीवन बचा है अभी ज़मीन के भीतर नमी बरक़रार है बरकरार है पत्थर के भीतर आग हरापन जड़ों के अन्दर साँस ले रहा है! जीवन बचा है अभी रोशनी खाकर भी हरकत में हैं पुतलियाँ दिमाग सोच रहा है जीवन के बारे में ख़ून दिल तक पहुँचने की कोशिश में है! जीवन बचा है अभी सूख गए फूल के आसपास है ख़ुशबू आदमी को छोड़कर भागे नहीं हैं सपने भाष…
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ईश्वर के बच्चे | आलोक आज़ाद क्या आपने ईश्वर के बच्चों को देखा है? ये अक्सर सीरिया और अफ्रीका के खुले मैदानों में धरती से क्षितिज की और दौड़ लगा रहे होते हैं ये अपनी माँ की कोख से ही मज़दूर है। और अपने पिता के पहले स्पर्श से ही युद्धरत है। ये किसी चमत्कार की तरह युद्ध में गिराए जा रहे खाने के थैलों के पास प्रकट हो जाते हैं। और किसी चमत्कार की तरह ही …
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सुख का दुख / भवानीप्रसाद मिश्र ज़िन्दगी में कोई बड़ा सुख नहीं है, इस बात का मुझे बड़ा दु:ख नहीं है, क्योंकि मैं छोटा आदमी हूँ, बड़े सुख आ जाएँ घर में तो कोई ऎसा कमरा नहीं है जिसमें उसे टिका दूँ। यहाँ एक बात इससे भी बड़ी दर्दनाक बात यह है कि, बड़े सुखों को देखकर मेरे बच्चे सहम जाते हैं, मैंने बड़ी कोशिश की है उन्हें सिखा दूँ कि सुख कोई डरने की चीज़ नह…
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wHI MP3 जनवरी 2025 - 03
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wHI MP3 जनवरी 2025 - 06
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wHI MP3 जनवरी 2025 - 05
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wHI MP3 जनवरी 2025 - 01
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वह मुझी में है भय | नंदकिशोर आचार्य एक अनन्त शून्य ही हो यदि तुम तो मुझे भय क्यों है ? कुछ है ही नहीं जब जिस पर जा गिरूँ चूर-चूर हो छितर जाऊँ उड़ जायें मेरे परखच्चे तब क्यों डरूँ? नहीं, तुम नहीं वह मुझी में है भय मुझ को जो मार देता है। और इसलिए वह रूप भी जो तुम्हें आकार देता है।Nayi Dhara Radio
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एक आदमी दो पहाड़ों को कुहनियों से ठेलता | शमशेर बहादुर सिंह एक आदमी दो पहाड़ों को कुहनियों से ठेलता पूरब से पच्छिम को एक क़दम से नापता बढ़ रहा है कितनी ऊँची घासें चाँद-तारों को छूने-छूने को हैं जिनसे घुटनों को निकालता वह बढ़ रहा है अपनी शाम को सुबह से मिलाता हुआ फिर क्यों दो बादलों के तार उसे महज़ उलझा रहे हैं?…
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माँ, मोज़े, और ख़्वाब | प्रशांत पुरोहित माँ के हाथों से बुने मोज़े मैं अपने पाँवों में पहनता हूँ, सिर पे रखता हूँ। मेरे बचपन से कुछ बुनती आ रही है, सब उसी के ख़्वाब हैं जो दिल में रखता हूँ। पाँव बढ़ते गए, मोज़े घिसते-फटते गए, हर माहे-पूस में एक और ले रखता हूँ। मैं माँगता जाता हूँ, वो फिर दे देती है - और एक नया ख़्वाब नए रंगो-डिज़ाइन में मेरे सब जाड…
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दुख | मदन कश्यप दुख इतना था उसके जीवन में कि प्यार में भी दुख ही था उसकी आँखों में झाँका दुख तालाब के जल की तरह ठहरा हुआ था उसे बाँहों में कसा पीठ पर दुख दागने के निशान की तरह दिखा उसे चूमना चाहा दुख होंठों पर पपड़ियों की तरह जमा था उसे निर्वस्त्र करना चाहा उसने दुख पहन रखा था जिसे उतारना संभव नहीं था।…
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बचपन की वह नदी | नासिरा शर्मा बचपन की वह नदी जो बहती थी मेरी नसों में जाने कितनी बार उतारा है मैंने उसे अक्षरों में पढ़ने वाले करते हैं शिकायत यह नदी कहाँ है जिसका ज़िक्र है अकसर आपकी कहानियों में? कैसे कहूँ कि यादों का भी एक सच होता है जो वर्तमान में कहीं नज़र नहीं आता वर्तमान का अतीत हो जाना भी समय के बहने जैसा है जैसे वह नदी बहती थी कभी पिघली चा…
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डेली पैसेंजर | अरुण कमल मैंने उसे कुछ भी तो नहीं दिया इसे प्यार भी तो नहीं कहेंगे एक धुँधले-से स्टेशन पर वह हमारे डब्बे में चढ़ी और भीड़ में खड़ी रही कुछ देर सीकड़ पकड़े पाँव बदलती फिर मेरी ओर देखा और मैंने पाँव सीट से नीचे कर लिए और नीचे उतार दिया झोला उसने कुछ कहा तो नहीं था वह आ गई और मेरी बग़ल में बैठ गई धीरे से पीठ तख़्ते से टिकाई और लंबी साँस …
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देहरी | गीतू गर्ग बुढ़ा जाती है मायके की ढ्योडियॉं अशक्त होती मॉं के साथ.. अकेलेपन को सीने की कसमसाहट में भरने की आतुरता निढाल आशंकाओं में झूलती उतराती.. थाली में परसी एक तरकारी और दाल देती है गवाही दीवारों पर चस्पाँ कैफ़ियत की अब इनकी उम्र को लच्छेदार भोजन नहीं पचता मन को चलाना इस उमर में नहीं सजता होंठ भीतर ही भीतर फड़फड़ाते हैं बिटिया को खीर पसं…
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पूरा दिन | गुलज़ार मुझे खर्ची में पूरा एक दिन, हर रोज़ मिलता है मगर हर रोज़ कोई छीन लेता है, झपट लेता है, अंटी से कभी खीसे से गिर पड़ता है तो गिरने की आहट भी नहीं होती, खरे दिन को भी खोटा समझ के भूल जाता हूँ मैं गिरेबान से पकड़ कर मांगने वाले भी मिलते हैं "तेरी गुज़री हुई पुश्तों का कर्जा है, तुझे किश्तें चुकानी है " ज़बरदस्ती कोई गिरवी रख लेता है, …
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