Atma-Bodha Lesson # 35 :
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आत्म-बोध के 35th श्लोक में आचार्यश्री हमें आत्म-चिन्तन रुपी अभ्यास के लिए कुछ और लक्षण प्रदान कर रहे हैं। ये लक्षण उन्ही साधकों के लिए हैं जिसने आत्मा के ऊपर से अनात्मा के धर्मों का अपवाद कर दिया है। अगर नहीं तो ये सब कल्पना मात्र हो जायेगा जिसका कोई लाभ नहीं होगा। जब हमने देह आदि से अपने को मुक्त देख लिया है, तब हम मात्र चिन्मयी सत्ता होते हैं, जो की आकाश की तरह से सबके अंदर-बाहर होता है। ये सैदव ऐसा ही था और रहेगा अतः अच्युत है. सबके प्रति सम, शुद्ध, असंग और निर्मल है। यह ही हम हैं।
इस पाठ के प्रश्न :
१. निदिध्यासन क्या निषेध से पहले भी हो सकता है, अगर नहीं तो क्यों नहीं ?
२. अंदर-बाहिर किस दृष्टी से होता है?
३. अच्युत का क्या अर्थ है?
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